ग़ज़ल

बारहा कागज़ों पर उतारे गए,
लफ्ज़ मानी से मिलते ही मारे गए.

चार कपड़ों में मौसम समेटे गए,
दो निगाहों से मँज़र सँवारे गए.

बादशाहत का दावा तो करते मग़र,
तख़्त हमसे जुए में न हारे गए.

ह़र्फ़े-आख़िर वही हैं तवारीख़ के,
इस भरम में कई लोग मारे गए.

मुख़्तसर सा फसाना फकीरों का है,
रात काटी गई दिन गुज़ारे गए.
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ज़िन्दगी भर पुकारी गई आयतें,
आख़िरी वक्त में हम पुकारे गए !
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मानी = अर्थ
ह़र्फे-आख़िर = अँतिम सत्य
तवारीख़ = इतिहास